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Veer Bal Diwas : पीएम मोदी ने वीर बाल दिवस पर किया साहिबजादों को नमन, कहा ‘पीढ़ियों को अपने साहस और बलिदान से प्रेरित किया’

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Veer Bal Diwas : आज वीर बाल दिवस है। ये दिन गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह की वीरता और बलिदान के नाम समर्पित है। 26 दिसंबर 1705 को सरहिंद के नवाब वज़ीर खान के आदेश पर उन्हें जीवित  दीवार में चुनवा दिया गया, क्योंकि उन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 को घोषणा ‘वीर बाल दिवस’ मनाने की घोषणा की थी।

आज के दिन पीएम मोदी ने उनके बलिदान को याद करते हुए एक्स पर लिखा है कि ‘आज वीर बाल दिवस पर हम साहिबजादों की अद्वितीय वीरता और बलिदान को याद करते हैं। छोटी उम्र में, वे अपने विश्वास और सिद्धांतों पर दृढ़ रहे और पीढ़ियों को अपने साहस से प्रेरित किया। उनका बलिदान वीरता और मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता का एक ज्वलंत उदाहरण है। हम माता गुजरी जी और श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की बहादुरी को भी याद करते हैं। वे हमेशा हमें एक अधिक न्यायपूर्ण और दयालु समाज के निर्माण की दिशा में मार्गदर्शन करें।’

क्यों मनाया जाता है वीर बाल दिवस

गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह का बलिदान सिख इतिहास और भारतीय संस्कृति में वीरता और धर्म की रक्षा का अविस्मरणीय उदाहरण है। गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह ने सिर्फ 7 और 9 साल की उम्र में धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया था। मुगल शासक वज़ीर खान ने उन्हें इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए विवश किया। साहिबजादों ने इस्लाम धर्म स्वीकार करने से इनकार कर दिया और अपने धर्म और मूल्यों की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दे दिया। 26 दिसंबर 1705 को को उन्हें दीवार में जीवित चुनवा दिया गया।

साहिबजादों के बलिदान की स्मृति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 जनवरी 2022 को घोषणा की कि हर वर्ष 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन को चुनने का उद्देश्य साहिबजादों की शहादत को श्रद्धांजलि अर्पित करना और उनके आदर्शों को नई पीढ़ी तक पहुंचाना है। वीर बाल दिवस मनाने का उद्देश्य बच्चों और युवाओं को साहिबजादों के बलिदान और उनकी वीरता से प्रेरणा देना है।

साहिबजादों के बलिदान की कथा

जब मुगलों ने आनंदपुर साहिब पर आक्रमण किया तो गुरु गोबिंद सिंह जी का परिवार बिखर गया। छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह (9 वर्ष) और बाबा फतेह सिंह (7 वर्ष) अपनी दादी माता गुजरी जी के साथ अलग हो गए। उन्हें मुगलों द्वारा पकड़कर सरहिंद ले जाया गया। वहां वज़ीर खान ने उन्हें इस्लाम धर्म अपनाने का आदेश दिया, लेकिन साहिबजादों ने अपने धर्म और मूल्यों की रक्षा करते हुए इस्लाम धर्म स्वीकार करने से इनकार कर दिया। उनकी इस अडिगता और साहस के लिए उन्हें जीवित ही दीवार में चुनवा दिया गया।

यह घटना सिख इतिहास में धर्म और सत्य के लिए किए गए सबसे महान बलिदानों में से एक मानी जाती है। छोटे साहिबजादों की उम्र भले ही कम थी, लेकिन उनका साहस और धर्म के प्रति निष्ठा असीम थी। उनके बलिदान ने न सिर्फ सिख समुदाय, बल्कि पूरी मानवता को प्रेरित किया।

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"पत्रकारिता का मुख्य काम है, लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को संदर्भ के साथ इस तरह रखना कि हम उसका इस्तेमाल मनुष्य की स्थिति सुधारने में कर सकें।”

मध्यप्रदेश समाचार

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